दमोह की छात्राओं के लिए कॉलेज आना बना संघर्ष, जिला प्रशासन की अनदेखी पर सवाल..
दमोह: जिले के केएन गर्ल्स कॉलेज में 5,000 से अधिक छात्राएं अध्ययनरत हैं, लेकिन आज तक उनके लिए परिवहन की कोई समुचित व्यवस्था नहीं की गई है। 40 किमी दूर से आने वाली छात्राओं को बसों में सीट तक नसीब नहीं होती, जिससे उन्हें खड़े होकर सफर करना पड़ता है। इतना ही नहीं, भीड़भाड़ के कारण उन्हें शारीरिक उत्पीड़न जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है।
प्रशासन की लापरवाही से छात्राओं की मुश्किलें बढ़ीं
कॉलेज में 60% छात्राएं ग्रामीण इलाकों से आती हैं, जिनमें से कई को ऑटो, टैक्सी या फिर प्राइवेट बसों से सफर करना पड़ता है। परंतु, बसों में न तो उनके लिए सीट आरक्षित होती है और न ही कोई अन्य सुविधा उपलब्ध कराई गई है।
छात्राओं का कहना है कि बस चालक और कंडक्टर उन्हें सीट नहीं देते, जबरदस्ती उठाने की कोशिश करते हैं, और भीड़ का फायदा उठाकर गलत तरीके से छूने की घटनाएं भी होती हैं।
क्या महिला सुरक्षा केवल कागजों पर सीमित?
दमोह जिला प्रशासन ने अभी तक छात्राओं की इस गंभीर समस्या पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। न ही कॉलेज तक सुरक्षित परिवहन की कोई सुविधा दी गई है, न ही बसों में महिला सुरक्षा के लिए निगरानी की कोई व्यवस्था की गई है।
छात्राओं के लिए क्यों जरूरी है विशेष परिवहन सुविधा?
- महिला सुरक्षा – सार्वजनिक बसों में छेड़छाड़ की घटनाएं आम हो चुकी हैं।
- आरक्षित सीटें – छात्राओं के लिए बसों में सुरक्षित सीटों की व्यवस्था जरूरी है।
- कम खर्च में परिवहन – वर्तमान में छात्राओं को पूरा किराया देना पड़ता है, जो कई परिवारों के लिए आर्थिक बोझ है।
- बसों की संख्या बढ़े – ज्यादा बसें चलाई जाएं ताकि छात्राओं को खड़े होकर सफर न करना पड़े।
क्या प्रशासन जागेगा?
दमोह की हजारों छात्राएं रोज इस मुश्किल का सामना कर रही हैं, लेकिन जिला प्रशासन अब तक मौन है। सवाल यह उठता है कि क्या प्रशासन छात्राओं की सुरक्षा को लेकर कोई कदम उठाएगा या फिर वे यूं ही असुरक्षित सफर करने के लिए मजबूर रहेंगी?
दमोह की बेटियां क्या कभी सुरक्षित सफर कर पाएंगी या प्रशासन उनकी समस्याओं पर यूं ही आंखें मूंदे रहेगा?
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