यदि सुखी रहना है तो सत्संग से जुड़ो, सत्संग से ही ज्ञान होता है -श्री श्रावणानंद सरस्वती जी..बुंदेली दमोह महोत्सव परिसर का हुआ भूमिपूजन..

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यदि सुखी रहना है तो सत्संग से जुड़ो, सत्संग से ही ज्ञान होता है -श्री श्रावणानंद सरस्वती जी..

अध्यात्म विद्या आलसी प्रमादी के लिए नहीं है, पुरुषार्थी के लिए है -श्री श्रावणानंद सरस्वती जी..

दमोह – प्रोफेसर कॉलोनी में श्री सिद्धिदानी देवी मंदिर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के पंचम दिवस वृंदावन धाम से पधारे परम पूज्य  श्रावणानंद सरस्वती जी ने बताया कि श्रीमद्भागवत महापुराण परमात्मा की ओर तो ले ही जाता है, महात्मा से भी अनुराग करना सिखाता है। इसका एक डिम-डिम घोष यह भी है कि यदि सुखी रहना है तो सत्संग से जुड़ो, सत्संग से ही ज्ञान होता है। संसार नाम ही उसी का है जो सरक रहा है। चाहे कितनी मज़बूती से इसे पकड़ो यह सरक ही जायेगा। जो सुख का काल होता है वह बहुत जल्दी बीत जाता है। मनुष्य जीवन का प्राप्तव्य वस्तु, स्थान, व्यक्ति नहीं है , केवल परमात्म बोध है।

साधक के लिए शरीर का बहुत ज़्यादा महत्व नहीं है, शरीर साधन के लिए हैं, जब तक लक्ष्य तक पहुँच न जाए तब तक शरीर का साथ रहे। ध्रुव जी का मृत्यु के सर पर पैर रखकर जाने का अभिप्राय है – वे मृत्यु के रहस्य को समझ गए थे कि मृत्यु नाम की कोई स्थिति ही नहीं है।

अध्यात्म विद्या आलसी प्रमादी के लिए नहीं है, पुरुषार्थी के लिए है। परम पुरुषार्थ को पाने के लिए सजगता सावधानी विवेक रखना ही पड़ता है। भगवान की कृपा का फल यह नश्वर संसार नहीं है धन आदि भी नहीं है। इसकी एक मात्र पहचान है जिसपर भगवान की कृपा होती है उसके जीवन में संत आ जाते हैं। जब जीवन में बसंत रूपी संत आते हैं तब हमारे मुरझाये हुए जीवन में सत्संग रूपी फल मिलता है। अभी हम बुद्धि भोग में जी रहे हैं। जिस दिन भगवान की कृपा से बुद्धियोग बन जायेगा उस दिन पता चलेगा कि परमात्मा का कभी वियोग ही नहीं हुआ है। जीव पर जब ईश्वर कृपा करता है उसके सामने स्वयं ही गुरु बनकर प्रकट हो जाता है। गुरु को लगता है कि जिस ज्ञान से वे प्रकाशित हैं उस ज्ञान से ही सब प्रकाशित हो जाएं। अज्ञान को नाश करने वाले का नाम ही गुरु है। विभिन्न प्रकार के संयम में सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण वाणी का संयम है। जो काम बोलकर नहीं किया जा सकता, वह बिना बोले किया जा सकता है।ॐ स्वीकृति मंत्र है। जैसी घटना घट रही है उसको स्वीकार करते चलना। कुछ प्रतिकार किए बग़ैर कुछ बदले बग़ैर स्वीकार हो।

भक्त का हृदय बहुत उदार होता है, तभी इतना बड़ा परमात्मा उसमें समा जाता है। संकीर्ण नहीं उदार बनो , वृत्ति को शांत रखो, क्षमा का आभूषण धारण करो!भगवान की ओर बढ़ो तो सही! माया भगवान की चेरी है और जो उनकी तरफ़ बढ़ता है वह उसकी संगिनी हो जाती है।

बुंदेली दमोह महोत्सव परिसर का हुआ भूमिपूजन..

दमोह – बुंदेली गौरव न्यास दमोह के सचिव प्रभात सेठ ने बताया कि प्रतिवर्ष अनुसार इस वर्ष भी बुंदेली दमोह महोत्सव का आयोजन 18 जनवरी से 31 जनवरी किया जायेगा।

आज प्रथम पूज्य श्री गणेश जी की आराधना पूजन के साथ महोत्सव परिसर का भूमिपूजन किया गया और विधिवत महोत्सव परिसर को व्यवस्थित बनाने और आकर्षक साज सज्जा का कार्य शुरू हो गया है। दमोह के सबसे बड़े महोत्सव में आप सभी दमोह वासी अपने संबंधियों, परिवार और मित्रों के साथ सादर आमंत्रित हैं। आईयेगा और महोत्सव का आनंद उठाये।

भूमिपूजन के समय घनश्याम पाठक, मोहित संगतानी, संतोष रोहित, राजू नामदेव, मोंटी रैकवार सहित महोत्सव समिति सदस्यों की उपस्थिति रही।

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