दमोह। कथा व्यास श्री हरे कृष्ण दास ब्रह्मचारी जी महाराज वृंदावन ने हरी की इच्छा से असाटी समाज द्वारा संस्कार भवन में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिवस सोमवार को श्रीमद्भागवत महापुराण के माध्यम से सृष्टि के विस्तार, ब्रह्मा जी की उत्पत्ति, वाराह एवं कपिल अवतार की कथा कहते हुए सती एवं ध्रुव चरित्र पर विशेष प्रकाश डाला। आपने श्री कपिल जी के अवतार की कथा कहते हुए कहा कि माता देवहुति को कपिल जी ने आत्म धर्म की बात कहते हुए कहा कि हे माता मेरी (भगवान् की) भक्ति करने से प्राणियों को सर्व सिद्धि प्राप्त हो सकती है।

परन्तु वह माया अर्थात मैं और मेरा एवं तू और तेरा के दुराग्रह में अपने कर्तव्य को भूल, देव दुर्लभ मनुष्य जन्म को राग-द्वेष के कारण व्यर्थ में खो देता है.आपने कहा श्री कपिलदेव जी बोले हे माता जो मेरा निकाम निर्गुण भक्त होता है, वह त्रिभुवन के कोई भी भोग पदार्थ नहीं चाहता. यहाँ तक कि मेरी प्रेमाभक्ति को छोड़कर मेरे द्वारा उसे पांच प्रकार के मोक्ष सालोक्य, ऐश्वर्य, सारूप्य, सामीप्य और सायुज्य देने पर भी ग्रहण नहीं करता, आपने कहा कि श्रीकृष्ण सेवा करता ही जीव का स्वरूप धर्म है।
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