मैं सौभाग्यशाली हूँ, कि मैं भारत के हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश से आता हूँ..

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काशी की यह पुण्य भूमि मानव जाति के पुरूषार्थ का मूल है, सनातन धर्म केवल हिन्दुओं के लिए ही नहीं बल्कि संपूर्ण मानव जाति के कल्याण का मार्ग है

मैं सौभाग्यशाली हूँ, कि मैं भारत के हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश से आता हूँ जहां चार शक्तिपीठ स्थापित है-संस्कृति राज्यमंत्री धर्मेन्द्र भाव सिंह लोधी

शक्ति पीठ समागम में राज्यमंत्री लोधी ने किये अपने विचार व्यक्त

दमोह : संपूर्ण चराचर के स्वामी बाबा विश्वनाथ को नमन करता हूँ। मैं अभिभूत हूँ, कि मुझे काशी की पुण्यभूमि पर आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। इसके लिए मैं “सेंटर फॉर सनातन रिसर्च” का आभार प्रकट करता हूँ। काशी की यह पुण्य भूमि मानव जाति के पुरूषार्थ का मूल है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की यात्रा के मार्ग काशी से ही निकलते है। काशी सूक्ष्म जगत और बाहरी जगत का मिलन है, काशी सीमित और असीमित का मिलन है। काशी भौतिकता और आध्यात्मिकता का समागम है। कहते है, काशी दुनियां का सबसे प्राचीनतम शहर है, और प्रलय के बाद जब सब कुछ नष्ट हो जायेगा, काशी का अस्तित्व तब भी रहेगा। काशी केवल एक नगर नही है, सनातन का प्रकाश पुंज है। काशी मनुष्य की मुक्ति का केन्द्र है। काशी अलौकिक है, काशी अनन्त है। इस आशय के विचार प्रदेश के संस्कृति, पर्यटन, धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री धर्मेन्द्र सिंह लोधी ने शक्ति पीठ समागम काशी में आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किये।

        राज्यमंत्री श्री धर्मेन्द्र सिंह लोधी ने कहा अखण्ड भारत की यह 51 शक्तिपीठ मानव जाति के किये आध्यात्मिक चेतना और आत्मशक्ति का स्त्रोत है। यह सभी शक्तिपीठ युगों-युगों से सनातन धर्म को आलोकित कर रही है। संसार में जो भी स्त्रियां है, वे सब देवी के ही रूप है। सम्पूर्ण संसार में केवल एक तत्व ही व्याप्त है और वह है, शक्ति तत्व। शक्ति की स्तुति के अतिरिक्त इस संसार में दूसरा कोई श्रेष्ठ कार्य नही है।

        उन्होंने कहा भारत सदैव से शक्ति की उपासना और शक्ति की आराधना वाला समाज रहा है। विदेशी लेखकों ने हमे समझाया कि हम सहष्णु है, निःसंदेह हम सहष्णु हैं और सहिष्णुता हिन्दू धर्म का मूल है। लेकिन जिस प्रकार हमें दबा, सहमा, हम कुछ नही करते, हम शस्त्र नही उठाते है, वाली जो थोथी परिकल्पनाऐं हमें समझायी गई हैं, भारत वैसा नही है। भारत सदैव से शक्ति का उपासक है। इसीलिए हिन्दू धर्म के प्रत्येक देवता के हाथ में शस्त्र है। अगर शास्त्र है, तो शस्त्र भी है। इस प्रकार हम हमेशा से शक्ति की उपासना करने वाले समाज का हिस्सा हैं।

        उन्होंने कहा संपूर्ण भारत वर्ष में शक्ति संचार होता रहे, कदाचित इसीलिए देश में 51 शक्तिपीठों की स्थापना की गई है। यह शक्तिपीठ हमें शक्ति की उपासना की प्रेरणा देते हैं। इन शक्तिपीठों का धार्मिक महत्व तो हैं ही, साथ में इनका रणनीतिक महत्व भी है।

        8 वीं, 9वीं शताब्दी में आदि जगतगुरू शंकराचार्य हुए। वह समय ऐसा था कि धर्म की हानि हो रही थी। विदेशी इस्लामिक आक्रमण हो रहे थे। उस समय उन्होंने धर्म की स्थापना के लिऐ भारत के चारों कोनों पर मठ स्थापित किये। हमें ध्यान देना चाहिए कि वे मठ भारत में किन स्थानों पर बने है। वह मठ भारत की चारों दिशाओं में स्थापित हैं। उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम, पूर्व में जगन्नाथपुरी और पश्चिम में द्वारिका। हमें समझना पड़ेगा कि चारों मठ भारत की चारों दिशाओं में क्यों स्थित है। वास्तव में यह अखण्ड भारत को जोड़ने का तरीका था।

        उन्होंने कहा वास्तव में भारत को जोड़ना धार्मिक रूप से ही संभव है, क्योकि धर्म भारत की हवाओं में है। धर्म भारत की आत्मा में है, और अगर भारत की आत्मा को कोई छूता है, तो वह धर्म ही छूता है।

        ऐसी स्थिति में जब हम शक्तिपीठों की बात करते है, तो शक्तिपीठ भी भारत को जोड़ने का एक माध्यम है। अगर हम अखण्ड भारत के मानचित्र पर देखे कि 51 शक्तिपीठ कहां-कहां है तो हम समझ पायेंगे कि यह शक्तिपीठ अखण्ड भारत में चारों ओर फैले हुये है। यह शक्तिपीठ पूर्व में तिब्बत, नेपाल और बांग्लादेश से लेकर पश्चिम में पाकिस्तान तक और उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी और श्रीलंका तक स्थापित हैं, जो भारतवर्ष की अखण्डता को प्रदर्शित करते हैं।

        यह शक्तिपीठ हमें अपने वैभवशाली इतिहास पर गर्व करने का अवसर प्रदान करते हैं। यह शक्तिपीठ हमें बताते है, कि अखण्ड भारत की सीमायें कहां तक फैली हुई थी। यह शक्तिपीठ हमें बताते है, कि युगों-युगों से हिन्दू धर्म का प्रसार कहां-कहां तक था।

        संस्कृति राज्यमंत्री श्री लोधी ने कहा मैं सौभाग्यशाली हूँ, कि मैं भारत के हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश से आता हूँ। जहां चार शक्तिपीठ स्थापित है। नर्मदा शक्तिपीठ अमरकंटक, अवंति शक्तिपीठ उज्जैन, काली शक्तिपीठ अमरकंटक और शारदा शक्तिपीठ मैहर।

        तीर्थाटन और पर्यटन के माध्यम से सभी 51 शक्तिपीठों को एक सर्किट के रूप में विकसित कर इनके धार्मिक और रणनीतिक महत्व को संपूर्ण विश्व में प्रसारित करने का विचार, जो इस आयोजन की मूल भावना में निश्चित है, प्रसंशनीय और सनातन को सर्वांगीण सर्वकालिक बनाने का अद्वितीय कार्य है।

        उन्होंने कहा यह बताते हुये अत्यंत प्रसन्नता है, कि मध्यप्रदेश में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के अनेक कार्य किये जा रहे है। हमारी सरकार प्रदेश में धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के स्थानों को चिन्हित कर 20 धार्मिक और सांस्कृतिक लोकों का निर्माण कर रही है। हमारा उद्देश्य ऐसे स्थानों पर धार्मिक तीर्थाटन को विश्व स्तरीय बनाना है।

        मुझे बताते हुये यह भी प्रसन्नता है, कि हमारी सरकार शारदा शक्ति पीठ, मैहर और नर्मदा शक्ति पीठ का विकास भी शारदा लोक और नर्मदा लोक के रूप मे कर रही है। मेरा मानना है, कि अखण्ड भारत में जहां-जहां भी शक्तिपीठ स्थित है, उन्हें तीर्थाटन और पर्यटन के दृष्टिकोण से विकसित किया जाना चाहिए। भारत एक धार्मिक उत्कर्ष वाला देश है, इसलिए धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से इन शक्तिपीठों को सर्वांगीण विकास आवश्यक है। इस कार्य के लिए भारत के सभी प्रातों को भारत सरकार के साथ मिलकर समन्वित प्रयास किया जाना चाहिए, ताकि इन, शक्तिपीठों के माध्यम से भारत वर्ष को धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से जोड़कर जनमानस में शक्ति का संचार किया जा सकें।

        उन्होंने कहा इस अवसर पर मुझे मालवा की एक रानी लोक माता अहिल्याबाई होल्कर याद आती हैं। पूरा देश उनका 300 वां जन्मशताब्दी वर्ष मना रहा है। लोकमाता अहिल्याबाई ने संपूर्ण भारत वर्ष में लोक सरोकार के जो कार्य किये वह न केवल अनुकरणीय हैं, बल्कि लोकमाता अहिल्याबाई की अखण्ड भारत को एक सूत्र में बांधने की पुनीत भावना को भी दर्शाते है।

        उन्होंने कहा ज्योर्तिलिंगो को हिंदू धर्म का मूल माना जाना चाहिए। ये ज्योर्तिलिंग मानवीय चेतना, आध्यात्मिकता और दिव्य शक्ति के केंद्र हैं। 'ज्योति' का अर्थ होता है प्रकाश, क्योंकि ये ज्योर्तिलिंग संपूर्ण जड़-चेतन को अपनी आध्यात्मिक चेतना से प्रकाशित करते हैं। वास्तव में सभी ज्योर्तिलिंग भी अखण्ड भारत का प्रतिनिधित्व करते है। इसलिए सभी 12 ज्योर्तिलिंगों को तीर्थाटन की दृष्टि से एक सर्किट बनाकर विकसित किए जाने की योजना बनानी चाहिए।

        उन्होंने कहा आज काशी की इस पुण्य भूमि से मै यहां की जनता और सरकार से आह्वान करता हूँ कि उज्जैन के महाकाल लोक की तर्ज पर "बाबा विश्वनाथ लोक" का निर्माण होना चाहिए। मैं बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने गया था, मैने ज्ञानवापी को भी देखा, वहां की हर दीवार, हर खंभ, हर स्थापत्य, हर चीज चीख-चीख कर कह रही है, कि हम बाबा विश्वनाथ के है।

        मैं आज इस मंच से कहना चाहता हूँ कि सनातन धर्म केवल हिन्दुओं के लिए ही नहीं बल्कि संपूर्ण मानव जाति के कल्याण का मार्ग है। हम सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया की संस्कृति के लोग है। सनातन धर्म मानव जाति के मूल्यों, नैतिकताओं, विचारों और आध्यात्मिक दर्शन को एक सूत्र में बांधकर परम मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।

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