अटल बिहारी वाजपेयी एक कवि, लेखक, पत्रकार, राजनेता, स्वतंत्रता सेनानी और दूरदर्शी व बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे- मोंटी रैकवार
दमोह। दमोह के युवा लेखक मोंटी रैकवार ने लेख लिखते हुए बताया है कि हमारे भारत देश के पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्वर्गीय श्री पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म सन् 1924 में मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक आदर्श शिक्षक के परिवार में हुआ। वाजपेयी जी ने अपने पूरे जीवन में शांति, सह-अस्तित्व, करुणा, समानता, न्याय और बंधुत्व के आदर्शों का पालन किया। अटल बिहारी वाजपेयी एक कवि, लेखक, पत्रकार, राजनेता, स्वतंत्रता सेनानी और दूरदर्शी व बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वह एक सच्चे राष्ट्रवादी थे और हमेशा राष्ट्रीय हित के लिए दलगत राजनीति से ऊँचे विचार रखते थे। वे चाहे सत्ता में रहे हों या विपक्ष में वे राष्ट्र हित के लिए सभी को साथ लेकर चलने में विश्वास रखते थे। इसीलिए उन्हें भारतीय राजनीति का अजातशत्रु भी कहा जाता है। कई दशकों के सार्वजनिक जीवन में उनके व्यक्तित्व पर एक भी दाग नहीं है। सत्यनिष्ठा, ईमानदारी और विशाल हृदय उनके व्यक्तित्व का एक अभिन्न अंग थे, जो एक पत्रकार के रूप में उनके लेखन, एक राजनेता के रूप में उनके भाषणों और एक प्रशासक के रूप में उनके दृष्टिकोण में हमेशा परिलक्षित होता था। वास्तव में विशाल हृदय सम्राट, जननायक नेे राजनीति में दृढ़ता व आदर्शों के साथ सम्मान प्राप्त किया।
वाजपेयी जी 1932 में बहुत कम उम्र में ही भारतीय जनसंघ के संस्थापक डा0 श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पं0 दीनदयाल उपाध्याय के विचारों से प्रभावित होकर आरएसएस में शामिल हो गए और 1947 में प्रचारक बन गए। 1951 में वे भारतीय जनसंघ के सदस्य बनकर औपचारिक रूप से राजनीति में शामिल हुए। उन्होंने 1957 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा और बलरामपुर से निर्वाचित हुए। उसके बाद राजनीति के क्षेत्र में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू संसद में उनकी जीवंत और अर्थमयी तर्क-वितर्क और चर्चा से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि ‘‘वाजपेयी जी एक दिन देश के प्रधानमंत्री बनेगें‘‘। 1980 में, वे भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष बने।
श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 1977 में जनता पार्टी की सरकार में विदेश मंत्री के रूप में, विभिन्न महत्वपूर्ण संसदीय स्थायी समितियों के प्रमुख और विपक्ष के नेता के रूप में ईमानदारी और प्रतिबद्धता के साथ जिम्मेवारी का निर्वाह किया। उनके ‘राष्ट्र प्रथम‘ के विश्वास से प्रभावित होकर, कांग्रेस सरकार में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने वाजपेयी जी को संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए भेजे जा रहे प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने के लिए कहा। हालांकि वाजपेयी जी उस समय विपक्ष के नेता थे। कूटनीतिक और विदेशी मामलों पर उनकी शानदार पकड़ थी। उन्होंने देश की विदेश नीति पर एक अमिट छाप छोड़ी। वे 1996 में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार के प्रधानमंत्री बने।
मैं यहां एक घटना का जिक्र करना चाहूंगा, जो दर्शाती है कि उन्होंने देश के बारे में किस प्रकार से सकारात्मक छाप बनाई और दुनिया के नेताओं के बीच अपनी पहचान कायम की। जब पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री राजीव गांधी जी के अंतिम संस्कार में शामिल होने आए थे, तब वे नई दिल्ली के अशोका होटल में ठहरे थे। उन्होंने वाजपेयी जी और लालकृष्ण आडवाणी जी को व्यक्तिगत मुलाकात के लिए आमंत्रित किया। श्री शरीफ ने बातचीत के दौरान कहा कि वह उनसे पहली बार मिल रहे हैं लेकिन जानते हैं कि विदेश मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल में भारत और पाकिस्तान के बीच सबसे सौहार्दपूर्ण संबंध रहे।
राष्ट्रीय हित के मामलों में वाजपेयी जी का दृष्टिकोण स्पष्ट था। जब वे 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बने थे तब उन्होंने परमाणु परीक्षण करने का मन बना लिया था लेकिन उनकी सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चली। हालांकि, उन्होंने 1998 में फिर से प्रधानमंत्री बनने के बाद पोखरण परमाणु परीक्षण में देरी नहीं की। डॉ एपीजे अब्दुल कलाम और डॉ आर चिदंबरम के साथ एक बैठक में, पोखरण परीक्षण के लिए मंजूरी दे दी गई और 11 व 13 मई 1998 को उन्नत हथियारों के पांच परमाणु परीक्षण के लिए पहले तीन विस्फोट एक साथ हुए। इसके बाद से हम 11 मई को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के रूप में मना रहे हैं।
राष्ट्रीय हित के मामलों में वे हमेशा आत्मविश्वास से भरे रहते थे। शायद यही एकमात्र कारण था कि जब 1998 में पोखरण-द्वितीय आयोजित किया गया था, तब वह अमेरिका और अन्य विकसित देशों के प्रतिबंधों के बावजूद कभी विचलित नहीं हुए। वे हमेशा पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने के इच्छुक थे। उन्होंने लाहौर बस सेवा शुरू की। उन्होंने आगरा शिखर सम्मेलन के लिए परवेज मुशर्रफ को भारत आमंत्रित करके पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने के लिए एक साहसिक कदम भी उठाया। मुशर्रफ ने कारगिल में हम पर हमला करके भारत के साथ विश्वासघात किया लेकिन वाजपेयी जी के नेतृत्व में हमारे वीर सैनिकों ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी।
प्रधानमंत्री के रूप में, वाजपेयी जी ने इंफ्रा अपग्रेडेशन, बेहतर सड़क, रेल और हवाई संपर्क के बारे में विशेष कार्य किया। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव द्वारा शुरू उदारीकरण की भावना के अनुरूप बड़े सुधारों की शुरुआत जारी रखी। उनके नेतृत्व में भारत ने आठ प्रतिशत की स्थिर आर्थिक वृद्धि बनाए रखकर देश को आर्थिक रूप से मजबूत किया। अपने कार्यकाल में विनिवेश मंत्रालय बनाकर उन्होंने सार्वजनिक उपक्रमों के कामकाज में आवश्यक लचीलापन लाने का कार्य किया। उन्होंने 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए प्रारंभिक शिक्षा निःशुल्क करने के लिए सर्व शिक्षा अभियान शुरू करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया। नदियों को आपस में जोड़ने की महत्त्वाकांक्षी परियोजना वाजपेयी जी का लंबे समय से संजोया हुआ सपना था। उन्होंने स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना और प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के माध्यम से रोड इंफ्रा को काफी बढ़ावा दिया, जिसकी बदौलत आज हमारे गांव सड़कों से जुड़े हैं। वाल्मीकि-अम्बेडकर आवास योजना के माध्यम से छत विहीन लोगों को पक्के मकान उपलब्ध कराए गए।
लम्बे समय तक पार्टी, संसद और केंद्रीय मंत्रालय में उनके सहयोगी के रूप में, मैं उन्हें एक विद्वान राजनेता, एक निस्वार्थ और समर्पित नेता के रूप में देखता हूं, जो सच्चे अर्थों में ‘जनता की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं‘ पर फोकस करते थे। उन्हें विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं के लोगों को साथ लेकर चलने के दुर्लभ गुणों का वरदान प्राप्त था और उन्होंने कभी भी सदन की कार्यवाही को बाधित करने के किसी भी प्रयास का समर्थन नहीं किया। जब लाल कृष्ण आडवाणी को उनकी रथ यात्रा के दौरान बिहार में गिरफ्तार किया गया था, तब मैं सांसद था। उस समय सप्ताहभर से अधिक समय तक संसद की कार्यवाही बाधित रही। वाजपेयी जी ने भाजपा के संसदीय दल की बैठक में कहा था कि संसद बहस और चर्चा का मंच है। हमें चर्चा की अनुमति देनी चाहिए। हमारी राजनीतिक लड़ाई संसद के बाहर जाकर जनता के बीच में लड़नी चाहिए।
आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी सुशासन के माध्यम से वाजपेयी जी के दृष्टिकोण को तार्किक निष्कर्ष पर ले जा रहे हैं ताकि कोई भी पीछे न रहे और आत्मनिर्भर भारत का सपना जल्द से जल्द साकार हो सके। वाजपेयी जी की तरह प्रधानमंत्री मोदी भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने, त्वरित सुधार, पारदर्शिता और विकास की गति को तेज करने के लिए प्रभावी कार्य कर रहे हैं। जन-धन-आधार-मोबाइल (JAM ) त्रिमूर्ति ने लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव किया है। कोविड महामारी के दौरान सरकार ने जरूरतमंद लोगों को 2 लाख करोड़ रुपये प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) के माध्यम से जमा करवा कर उनकी मदद की। वाजपेयी जी भारत को आर्थिक और सैन्य रूप से एक मजबूत राष्ट्र के रूप में देखना चाहते थे, जिसे प्रधानमंत्री मोदी आगे बढ़ा रहे हैं। सीमावर्ती इलाकों में बेहतरीन इंफ्रा तैयार किया जा रहा है, जबकि रक्षा बलों को अत्याधुनिक हथियार और गोला-बारूद, सुपरसोनिक मिसाइल और राफेल जैसे मल्टीरोल लड़ाकू विमान से लैस किया जा रहा है।
आज देश आजादी के 75 वर्षों को आजादी के अमृत काल के रूप में मना रहा है। वाजपेयी जी का ‘सुशासन मंत्र‘ – जो अखंडता पर आधारित है, जाति, धर्म, लिंग, विचारधारा और सामाजिक-आर्थिक स्थिति की विविधता के साथ आगे बढ़ते हुए गरीब, पिछड़ों, वंचितों व अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को समान अवसर प्रदान कर रहा है। देश आज उनकी जयंती को राष्ट्रीय सुशासन दिवस के रूप में मना रहा है। मैं महसूस करता हूं कि जनता, नेताओं और नौकरशाहों में देश के प्रति समर्पण और समाज के प्रति सम्मान होना चाहिए। हमें इस भावना के साथ काम करना चाहिए कि समाज के कल्याण में ही हमारा कल्याण है। इसी भाव से हमें अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए। एक मजबूत, स्वस्थ और समावेशी देश का निर्माण करना ही वाजपेयी जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। स्वच्छ राजनीति और स्वच्छ प्रशासन से ही भारत को विश्व गुरु बनाने का सपना साकार होगा।
लेखक
मोंटी रैकवार
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