संसार की समस्त समस्याओं का समाधान परमात्मा के पास है या महात्मा के पास है – स्वामी श्री श्रवणानंद सरस्वती जी..

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हार कर मत बैठो जो हार जाता है वो हरि तक कभी नही पहुंचता है – स्वामी श्री श्रवणानंद सरस्वती जी..

संसार की समस्त समस्याओं का समाधान परमात्मा के पास है या महात्मा के पास है – स्वामी श्री श्रवणानंद सरस्वती जी..

सिद्धधाम देवी मंदिर में शोभायात्रा के साथ श्रीमद्भागवत कथा प्रारम्भ..

दमोह- श्री सिद्ध नाम प्रोफेसर कॉलोनी 4 जनवरी से 10 जनवरी तक चलने वाली श्रीमद् भागवत कथा भक्ति यज्ञ की शोभा यात्रा बूंदाबहू मंदिर से प्रारंभ होकर नगर विभिन्न मार्गो से गुजरती हुई कथा स्थल देवी मंदिर पहुंची।


कथा के प्रथम दिवस आनंद वृंदावन से पधारे परम पूज्य स्वामी अखंडानंद सरस्वती जी के परम कृपापात्र स्वामी श्री श्रवणानंद सरस्वती जी ने बताया कि समय परिवर्तित होता है तो समस्याओं को भी जन्म देता है और संसार में जिन समस्याओं का जन्म होता है उसका समाधान भी होता है। संसार की समस्त समस्याओं का समाधान परमात्मा के पास है या महात्मा के पास है देवर्षि नारद जैसे महापुरुष उस समय समाज के शुभचिंतकों में एक थे। यदि आधुनिक भाषा में कहा जाए तो निश्चित रूप से वे एक सर्वश्रेष्ठ पत्रकार थे ।

विश्व के यदि प्रथम पत्रकारों में किसी का नाम लिया जाए तो देवर्षि नारद जी । उन्होंने संसार की समस्याओं को देखा, तीर्थ की समस्याओं को देखा, संतों की समस्याओं को देखा, समाज की समस्याओं को देखा, परिवार की समस्याओं को देखा, खोज के लिए निकले किंतु उसका समाधान यदि किसी के पास मिला तो संतो के पास मिला। संतों ने ही उसका समाधन दिया और उस समाधान का नाम है सत्संग, ज्ञान यज्ञ । ज्ञान यज्ञ ही हर समस्या का समाधान है , पतित से पतित व्यक्ति भी परमात्मा को प्राप्त कर सकता है उसका अधिकार है परमात्मा से मिलना। गोकर्ण जी महाराज ने धुंधकारी जैसे प्रतीत को भी परमात्मा से मिला दिया सत्संग के माध्यम से ज्ञान यज्ञ के माध्यम से। पुरुषार्थ करने के बाद भी कई बार व्यक्ति को समस्या का समाधान नहीं मिल पाता है ।

देवर्षि नारद जी महाराज ने वेदव्यास जी महाराज को भी समस्या का समाधान दिया । वह भी समाधान सत्संग ही था, व्यक्ति के जीवन में सत्संग मिलता है तो निश्चित रूप से उसका उद्धार होता है दुख से छुटकारा होता है। परमात्मा की शरण जाने के बाद भी समस्याएं आती रहेगी किंतु संतों से उसका समाधान होता रहेगा। यह राजर्षि परीक्षित के चरित्र से सीखने लायक है कभी भी प्रमाद युक्त मत बनो , प्रमाद ही मृत्यु है और यदि कोई अपराध हो भी जाए तो खड़े होकर के चलना सीखो उसका भी समाधान मिलेगा। हार कर मत बैठो जो हार जाता है वो हरि तक कभी नही पहुंचता है, और जो नहीं हारता है उसका हाथ हरि पकड़ करके चलता है। हरो मारो मत सदा बढ़ते रहो यही मानव जीवन का लक्ष्य है। और यही भागवत सिखाता है।

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