आत्मा का आनंद अरस है- निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज…

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दमोह। शास्त्र कहते हैं आत्मा अजर अमर और अविनाशी है किंतु सामान्य मनुष्य इस पर सहज विश्वास नहीं कर पाता शास्त्र कहता है उपवास में सुख है किंतु मनुष्य का अनुभव कहता है की रोटी में सुख है शास्त्र कहते हैं कि नीरज भोजन में सुख है किंतु मनुष्य का अनुभव कहता है की रस युक्त भोजन में आनंद है आत्मा का आनंद अरस ळें उपरोक्त विचार निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज ने दिगंबर जैन नन्हे मन्दिर धर्मशाला में शुक्रवार सुबह अपने मंगल प्रवचनों में अभिव्यक्त किये। मुनि श्री ने कहा कि जिसमें रस नहीं उसमें रस लेना आ आत्मा रूप रहित है अव्यक्त है अगंध है जब मनुष्य समझ नहीं पाता तो वह है नास्तिक हो जाता है शास्त्रों में इंद्री सुख को महादुख कहा गया जबकि अनुभव के आधार पर मनुष्य को इंद्रियों की सुख से ज्यादा आनंद कहीं और प्राप्त नहीं होता मनुष्य अंदर द्वंद में सही निर्णय नहीं ले पता वह सांसारिक दुखों को ही सुख मान लेता है उसे अतिंद्री सुख की प्राप्ति नहीं हो पाती वह मान बैठता है कि मार्ग में इतने दुख हैं तो मंजिल पाने पर कितने दुख होंगे और इसी तरह मिथ्या दृष्टि बना रहता है किंतु सम्यक दृष्टि मुनियों के कस्ट को देखकर सोचता है कि ऐसे साधना में कब करूंगा ताकि अपनी आत्मा के स्वरूप को पा सकूं सोकौशल मुनि को बाहर शेरनी चबा रही है उनके ऊपर दुख का पहाड़ दिख रहा है किंतु वे अंदर से आत्मा का रसपान कर रहे हैं अंदर से आनंद का झरना बह रहा है साधु को बाहर से देखोगे तो गम ही गम नजर आएंगे अंदर देखोगे तो सरगम लहराएंगे मुनि के समक्ष यमराज बाहर खड़ा है किंतु उन्हें अंदर अमरता नजर आती है धर्म की सारी कथाएं अनुभव की विपरीत नजर आती है अंजन चोर अपने विश्वास की दम पर अमरता को प्राप्त हो गया जब श्रद्धा और समर्पण होता है तभी आतिशी घटित होते हैं जिस तरह मनुष्य डॉक्टर के समक्ष ऑपरेशन थिएटर में अपने आप को समर्पित कर देता है श्रद्धा और विश्वास की दम पर भगवान राम की जीवन में कष्ट आए यदि वे पिता की आज्ञा नहीं मानते तो इतने कष्ट नहीं आते किंतु धर्म करने से संकट आते सम्यक दृष्टि जीव मरते हुए अमरता का अनुभव करता है धर्म करने से संकट आएगा यदि धर्मात्मा पर संकट नहीं आता तो वह नकली धर्मात्मा है सम्यक दर्शन के लिए इच्छा रहित हो जाना आवश्यक है। आज मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज को आहार देने का सौभाग्य नेमचंद बजाज परिवार को प्राप्त हुआ।

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