आम उपभोक्ता आसानी से पहचान कर सकते हैं फल कार्बाइड से पका हुआ या प्राकृतिक रूप से पका हुआ है
फलों को कृत्रिम रूप से पकाने के लिए ईथीलीन गैस का उपयोग करने की दी गई है भारत शासन द्वारा अनुमति
दमोह : कलेक्टर सुधीर कुमार कोचर द्वारा दिये गये निर्देशों के तहत खाद्य सुरक्षा प्रशासन विभाग दमोह द्वारा फलों की शुद्धता की पहचान करने के आसान तरीके की जानकारी आम उपभोक्ताओं को दी गई है। भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण नई दिल्ली ने ईथीलीन गैस को फलों के पकाने में इस्तेमाल करने की अनुमति दी है। खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 एवं विनियम 2011 के तहत फलों को कृत्रिम रूप से पकाने में कार्बाइड गैस के उपयोग को प्रतिबंधित किया गया है। ईथीलीन गैस को फलों के पकाने में 100 पी.पी.एम. तक उपयोग करने की अनुमति खाद्य सुरक्षा एवं मानक विनियम 2011 द्वारा दी गई है। ईथीलीन एक हार्मोन है जो फलों को प्राकृतिक रूप से पकने में मदद करता है एवं यह मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी नहीं होता है। इस गैस को ईथीलीन सिलेंडर, कंप्रेस्ड ईथीलीन गैस,इथेनॉल,ईथाफोन सेचेट आदि बाह्य स्त्रोतों के माध्यम से फलों को कृत्रिम रूप से पकाने में इस्तेमाल किया जा सकता है परंतु फलों पर सीधे संपर्क के द्वारा इनका उपयोग किया जाने पर प्रतिबंध है।
फलों के प्रति उपभोक्ता जागरूकता
सभी उपभोक्ताओं को फलों को केवल जाने माने फल विक्रेता, स्टोर्स, डीलर्स आदि से क्रय करना चाहिए जो यह घोषणा करें कि उनके परिसर में फलों को पकाने में प्रतिबंधित कार्बाइड गैस का उपयोग नहीं किया जाता है एवं न ही ऐसे फलों का वे विक्रय करते हैं। उपभोक्ताओं को फलों को साफ पानी में धोने के बाद ही इस्तेमाल करना चाहिए। किसी भी फल जो ज्यादा चमकदार लगे,जिन पर ज्यादा काले धब्बे हों उनको खरीदना नहीं चाहिए क्योंकि ऐसे फल कार्बाइड से पकाये हुए हो सकते हैं। फलों का पकना एक शारीरिक, जैव रासायनिक, आण्विक क्रियाओं का संयोजन है जिससे रंग, शक्कर की मात्रा, अम्लता, बनावट एवं सुगंध में परिवर्तन होते हैं इस शारीरिक प्रक्रिया से फल खाने योग्य, स्वादिष्ट एवं पोषणयुक्त हो जाते हैं। मौसमी फल जैसे केला, आम, पपीता, अमरूद, टमाटर आदि की उपज एक बार ली जा सकती है एवं इनको परिवहन/स्टोरेज के दौरान और भी पकाया जा सकता है। गैर मौसमी फल जैसे नींबू, संतरा, अंगूर, स्ट्राबेरी आदि को फसल आने के बाद और पकाया नहीं जा सकता है।
कार्बाइड से पके हुए फलों का मानव शरीर पर दुष्प्रभाव
कार्बाइड जिसे “मसाला” आम बोल चाल में कहते हैं का उपयोग करने लगते हैं जोकि की कैंसरकारक होता है इसमें आर्सेनिक एवं फॉस्फोरस तत्व के अंश पाए जाते हैं। इन तत्वों से चक्कर आना, जी मिचलाना, जलन, कमजोरी, निगलने में असुविधा, उल्टी, त्वचा अल्सर आदि स्वास्थ्य संबंधी लक्षण मानव शरीर में उत्पन्न हो जाते हैं। फलों के सीधे संपर्क में इस कार्बाइड के आने से फलों में भी आर्सेनिक एवं फॉस्फोरस तत्व के अंश आ जाते हैं जो मानव में विभिन्न शारीरिक व्यावधियों को उत्पन्न कर सकते हैं। इस कारण से कार्बाइड गैस के उपयोग को प्रतिबंधित किया गया है।
आम उपभोक्ता कैसे पहचान करें कि फल कार्बाइड से पका हुआ कि नहीं
कार्बाइड से पके हुए फल जैसे केले,आम ज्यादा पीले रंग,चटकदार रंग के होते हैं। केले के डंठल हरा रहता है जबकि पूरा भाग पीला होता है। प्राकृतिक रूप से पका हुआ केला चित्तीदार होता है। पानी मे डुबोने पर कार्बाइड से पका फल पानी के ऊपर तैरता है जबकि प्राकृतिक रूप से पका फल तलहटी पर डूब जाता है। प्राकृतिक रूप से पका हुआ आम भरा हुआ एवं गोलाकार होते हैं जबकि कृत्रिम रूप से पका हुआ आम ज्यादा पीला रंग का एवं उसके ऊपर हरे रंग के धब्बे ज्यादा मात्रा में होते हैं। आम को काटने पर पूरा आम सभी जगह एक सा पीला होता है तो प्राकृतिक रूप से पका हुआ है। आम पर अगर नीला या सफेद निशान हैं तो ऐसे आम को न खरीदें।
तरबूज की पहचान कैसे करें
तरबूज पर अगर सफेद पाउडर लगा हुआ है तो ऐसे तरबूज न खरीदें। तरबूज को काटने पर अगर ज्यादा लाल रंग एवं मीठा है तो ऐसे तरबूज को न खरीदें। तरबूज को दो भागों में काटें। रुई के टुकड़े को कटे हुए भाग पर रगड़ने पर अगर रूई लाल रंग का हो जाए तो तरबूज में हानिकारक केमिकल इंजेक्ट किया गया है। तरबूज के मध्य भाग में जला हुआ निशान है तो ऐसे तरबूज में केमिकल मिलाया गया है। तरबूज को काटने पर अगर क्रेक पड़ जाते हैं या छेद दिखे तो ऐसे तरबूज में केमिकल इंजेक्ट किया गया है। तरबूज का डंठल अगर डार्क कलर एवं सुखा हुआ है तो वह प्राकृतिक रूप से पका हुआ है जबकि हरा डंठल है तो वह केमिकल से पका हुआ है। तरबूज पर अगर गहरे पीले रंग का धब्बा है तो वह प्राकृतिक रूप से पका हुआ है। तरबूज को 2 से 3 दिन के लिए रखें अगर उसमें से पानी या झाग निकल आया है तो वह केमिकल से पका हुआ है।
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