हाथरस से सबक या धर्म के नाम पर और मौतों का इंतजार.. धर्म और आस्था के नाम पर मौत का खेल…

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नेता को वोट, अधिकारी को नेताओं का संरक्षण एवं मीडिया की टीआरपी में दफन हुई सैकडों जिंदगी
बहुत पुरानी बचपन की रसियन कहानी याद आई शीर्षक था खिड़की, एक सभ्य परिवार के सामने एक मकान में कुछ आवारा तत्वों का जमावड़ा। बाद में उन्ही आवारा तत्वों द्वारा देश में हिंसा का तांडव, सभ्य परिवार अपनी खिड़की से आवारा तत्वों की गतिविधियां देखता था लेकिन आवारा लोगों के यहां गुंडों, नेताओं एवं प्रभावशील व्यक्तियों के आवागमन के कारण विरोध नहीं कर सकता। बाद में बही आवारा तत्व देश के लिए खतरा बने।

बचपन में पढ़ाया गया देश में पहले अशिक्षा थी जिस कारण अंधविश्वास एवं रूढ़िवादिता की जड़े गहरी बैठी हुई थी। इसी अंधविश्वास के कारण देश पहले मुगलों बाद में अंग्रेजों का गुलाम रहा। अब देश शिक्षित है फिर भी अंधविश्वास एवं रूढ़िवादिता की जड़े और पनप रही है। सोशल मीडिया ने तो इस पर पंख लगा दिए है।
जब मुख्यमंत्री चरणों में हो, कद्दावर नेता दर्शन करे, अधिकारी गुलाम हो एवम मीडिया टीआरपी के चक्कर में अपना धर्म भूल जाए तो हाथरस में 122 की भगदड़ मौत पर नेताओं केआंसू बहाना, अधिकारियों की उछल कूंद एवम मीडिया का विधवा विलाप शोभा नही देता। देश में स्वतंत्रता के कुछ समय बाद तक धर्म आस्था एवं विश्वास का प्रतीक था। वर्तमान में दिखावा, शक्ति एवं पैसे का खेल हो गया है। देश में अंधविश्वास फैलाने एवं रूढ़िवादिता को बढ़ाने के लिए कानून भी बने है, लेकिन देश में भेड़ के लिए अलग शेर के लिए अलग कानून होने के कारण वोट, नोट, संरक्षण, टीआरपी के नाम पर इनका कुछ बिगाड़ नही हो सकता। वाजिब भी है जब शासन एवं प्रशासन अपराधियों के सामने नतमस्तक होगा तो आम आदमी की क्या बिसात।
अधिकांश धर्म के नाम पर अफीम चटाने वाले बाबा अनेतिक एवं असामाजिक गतिविधियों में लिप्त है लेकिन मजाल है प्रशासन या शासन की की इन पर कोई हाथ डाल सके।
देश में धर्म के नाम पर इन बाबाओं द्वारा बीमारियों का इलाज, भविष्य संवारने का लालच, समस्याओं की मुक्ति आदि आदि ऐसे प्रलोभन दिए जा जहां शिक्षा एवं मेडिकल को खुले आम चुनौती दी जा रही है।
ऐसा प्रतीत होने लगा है जैसे शिक्षा, तकनीक एवं चिकित्सा कोरी गप्प एवं बकवास है अगर जीवन में उन्नति है तो बह यही इन बाबाओं की शरण में है।

देवी देवताओं, ईश्वर के नाम पर इन बाबाओं द्वारा जमीन हड़पने, व्यापार में सहभागी बनने का गंदा खेल खेला जा रहा है, जिसमें बलि चढ़ते है महिलाएं एवं बच्चे।जैसे पूर्व में डाकुओं के अड्डे हुआ करते थे उसी प्रकार बाबाओं के अपने अपने क्षेत्र बन गए है जिनमें पुलिस, प्रशासन एवं कानून काम नही करता है। बाबाओं को तगड़ी सुरक्षा मिली है जो उन्हे वीआईपी बना रही है। उनकी अपनी तथाकथित फौज भी तैयार है। सेवादार क्या नही कर रहे किसी से छुपा नहीं। इन बाबाओं के परिवार के सदस्य भी कानून को अपनी जेब में डालकर विचरण कर रहे है।
कई बार तो ये कहिए की पीओके जैसे हालात है इन बाबाओं के क्षेत्र में। अगर प्रारंभ में ही इन पर लगाम कस गई होती तो 122 महिलाओं एवम बच्चों की चीत्कार नही सुनाई देती। इन बाबाओं को भी अपने शक्तिशाली होने का इतना गुरुर है की बह आम आदमी को कीड़ा मकोड़ा समझने लगे है।
देश के परतंत्र होने में अंधविश्वास का जितना हाथ उस समय था वर्तमान में देश को शिक्षित होने के बाद भी अंधविश्वास एवं रूढ़ीवादिता ने परतंत्र कर रखा है।
ईश्वर किसी एक का कैसे हो सकता है, ईश्वर से मिलने का माध्यम ये पाखंडी क्यों। अभी भी समय है सरकारें जैसे नशा के विरुद्ध अभियान चलाती है उसी प्रकार इस धर्मांधता के विरोध में भी सख्त कानून बनाए।

आम जनता को शिक्षा के मार्ग पर भेजने हेतु प्रेरित करे, स्वास्थ्य हेतु उचित चिकित्सा व्यवस्था हो ना की ढोंगियों के पास जाकर हाथरस जैसे हादसे में जीवन लीला समाप्त करे।
ये ढोंगी बाबा भी आम जनता को ज्यादा मूर्ख न बना सके इस हेतु सरकारें सख्त हो, अधिकारी सजग हो, मीडिया जागरूक हो।

हाथरस से सबक या धर्म के नाम पर और मौतों का इंतजार
धर्म एवम आस्था के नाम पर मौत का खेल

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