दमोह। दिगंबर जैन पर्यूषण पर्व के पांचवे दिन उतम सत्य धर्म के मर्म को जानकर सकल जैन समाज ने सत्य धर्म को अपनाने का संकल्प लिया। इस अवसर पर नगर के श्री पारसनाथ दिगंबर जैन मंदिर में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री प्रयोग सागर जी एवं मुनि श्री सुब्रत सागर जी महाराज के मंगल सानिध्य में दस लक्षण पर्व के पांचवे दिन उत्तम सत्य धर्म मनाया गया। जैन धर्मशाला परिसर में भगवान के भाव समवशरण के समक्ष प्रातःबेला में श्रीजी के अभिषेक शांति धारा उपरांत देव शास्त्र गुरु पूजन किया गया। तत्पश्चात सोलह कारण पूजन, पंचमेरु पूजन, दस लक्षण पूजन उपरांत आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का पूजन नवीन भइया ने संपन्न कराई। इस अवसर धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री सुब्रत सागर जी महाराज ने कहा कि आज उत्तम सत्य धर्म है उत्तम सत्य धर्म सबसे बड़ा धर्म होता है दुनिया में इसी की पूजा होती है।
इसी का राज्य रहता है हां इतना अवश्य है कि समय के अनुसार या कर्म के उदय में सत्य परेशान हो सकता है किंतु पराजित कभी नहीं होता। सत्य झुक सकता है किंतु मिट नहीं सकता। मुनि श्री ने कहा कि हर एक व्यक्ति झूठ से नफरत करता है कोई भी व्यक्ति यह नहीं कहता कि मैं झूठ बोलता हूं हर एक व्यक्ति सत्य ही बोलता है और हर व्यक्ति को झूठ से नफरत होती है किंतु इस दुनिया में जब सबको झूठ से नफरत है तो झूठ बोलता कौन है। आज तक इसका पता नहीं चल पाया है और खाने में तो यह भी आता है कि झूठ सारे संसार में अपना राज्य करता है सत्य कुछ नहीं करता हां यह शुरू-शुरू में देखने में आता है किंतु हमेशा नहीं क्योंकि इस दुनिया पर राज्य सत्य का ही चलता है दुनिया के हर एक काम झूट से नहीं अपितु विश्वास सत्य से चलते हैं क्योंकि झूठ भी अपना चलन प्रचलन सत्य के द्वारा ही कर पाता है।
सत्य को परेशान होना पड़ता है झूठ को नहीं जैसे दूध को बेचने घर-घर जाना पड़ता है शराब तो एक स्थान पर लोग खरीद कर ले जाते हैं इसी तरह से सत्य को दर्द बादल की ठोकने खाते हुए भटकना पड़ता है परेशान होना पड़ता है जूझना पड़ता है किंतु झूठ गाड़ी पर बैठता है लेकिन अंत झूठ का बहुत दर्दनाक होता है और सत्य सिंहासन पर बैठकर भी अनंत काल को राज करता है।
सभी लोग कहते हैं की सत्य कड़वा होता है किंतु यह बात ठीक नहीं है क्योंकि अगर सत्य कड़वा होता अथवा परेशान करने वाला होता अथवा गंदा होता तो अनंत अनंत तीर्थंकर और अनंत अनंत भगवान इसको प्रकार की मोक्ष में आनंद कैसे मनाते हैं और वर्तमान में इतनी सारे साधन जो सत्य को पाने के लिए साधना कर रहे हैं वह साधन क्यों करते इसका तात्पर्य यह हुआ कि सत्य कड़वा नहीं होता है अपितु जो लोग सत्य को कड़वा कहते हैं उनका स्वभाव कड़वा होता है और जिसका स्वभाव कड़वा होता उसकी हर एक चीज कड़वी लगेगी क्रोध मान माया और लोभ मुंह है और राग देश संबंधी समस्त बुराइयों के कारण जिसका चित्र बड़ा हो गया हो जिसके अंदर के भाव परिणाम बुरे हो गए हो उसकी हर एक चीज बुरी ही नजर आएगी इसलिए जो लोग यह कहते हैं कि सत्य कड़वा है वास्तव में सत्य में कोई कड़वाहट नहीं है किंतु कड़वाहट उनके स्वभाव में होने से सत्य कड़वा नजर आता है।
जैसे सावन के अंधे को पूरा हर नजर आता है अथवा जैसे पीलिया रोग हो गया हो उसको पीला पीला ही नजर आता है और जिसको भयंकर गुस्सा हो रहा आ रहा हो उसको सब लाल-लाल नजर आता है इसमें कमी वस्तुओं की नहीं है अपितु अपने स्वभाव की है इसलिए सत्य कड़वा नहीं है सत्य तो परम आनंददाई होता है किंतु जहां पर कोई झगड़ा होता है आचार्य श्री ज्ञान सागर जी महाराज के अनुसार वहां कुछ ना कुछ सत्य अवश्य है और यही सत्य यही बोलना महाभारत की जड़ है क्योंकि जब बोलने में कुछ सत्य आता है तो महाभारत जैसी महायुद्ध होते हैं जो मनुष्यों में धरतियों पर खून की नदियां बहा देते हैं।
हर एक बात कहने की नहीं होती किंतु अगर बोलना है तो सत्य बोलो लेकिन यदि ऐसा बोला गया जो सत्य तो है किंतु किसी की जान ले ले प्राण ले ले हिंसा कर दे युद्ध कर दे संग्राम कर दे ऐसा सत्य भी झूठ की श्रेणी में आता है क्योंकि सत्य के माध्यम से हिंसा हुई है और सत्य का उद्देश्य होता है हिंसा से बचाना अहिंसा धर्म का प्रचार प्रसार करना पालन करना लेकिन अगर कोई ऐसा झूठा है जो जीवन की रक्षा करें प्राण बचाए हिंसा धर्म का पालन करें धर्म की संयम की रक्षा करें तो ऐसा बोला गया झूठ भी झूठ नहीं होता अभी तू है सत्य की श्रेणी में आता है।
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