फिल्म कुहू को मिला इंडो अमेरिकन गोल्डन होक अवार्ड में सिलेक्शन, बेस्ट वूमेनस फिल्म अवार्ड के लिए चुनी गई है, पीरियड (मासिक धर्म) पर आधारित है ये फिल्म
दमोह। बुंदेलखंड में सिनेमा निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले प्रो डॉ रश्मि जेता की नई फिल्म कुहू को गोल्डन हॉक अवार्ड के लिए सिलेक्शन मिला है इसे बेस्ट वूमेनस फिल्म अवार्ड के लिए सिलेक्शन मिला है। ये एक इंडो अमेरिकन अवार्ड है इसके पहले इस फिल्म को बियोंड बॉर्डर फिल्म फेस्टिवल में नॉमिनेशन मिला था वही एक और फिल्म फेस्टिवल एशियाई इंडिपेंडेंट फिल्म फेस्टिवल में भी नॉमिनेशन मिला है पर अब यह फिल्म अवार्ड के लिए चुनी गई है। यह फिल्म महिलाओं के मासिक धर्म पीरियड पर आधारित है।वही ये फिल्म एक विद्रोही लड़की की कहानी है।
दरअसल आज के युग में महिलाओं को कानून की नजर में आजादी मिल चुकी है पर यह आजादी समाज की निगाहों में कितनी है इसका अंदाजा इस फिल्म को देखने के बाद लगाया जा सकता है आजादी कानून की निगाहें के साथ-साथ समाज की सोच में दिलाने के लिए एक घरेलू लड़की के संघर्ष की कहानी इस फिल्म में दिखाई गई है दरअसल ये कहानी एक परिवार मैं रहते हुए लड़कियों को किन बंधनो का सामना करना पड़ता है खासतौर पर पीरियड के समय में किस तरह की परेशानियां उठानी पड़ती है इन्हीं सब विषयों पर बानाई गई है, फिल्म में मुख्य भूमिका जुही खुशी सोनी,सुदीप्ति खरे और मनीष सोनी ने निभाई है । मुख्य किरदार को निभाते हुए जूही खुशी सोनी ने बखूबी एक विद्रोही लड़की के किरदार को निभाया है और समाज के बंधनों से जूझती हुईं नज़र आई है,वही समाज के नियमों को मानते हुए अपने परिवार की परंपरा को आगे बढ़ने का काम काजल की भूमिका में सुदीप्ति खरे ने बखूबी निभाया है लगातार बुंदेलखंड की फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक्टिंग का लोहा मनवा चुके अभिनेता मनीष सोनी इस फिल्म में पिता की भूमिका में है। बुंदेलखंड और यह की परंपरा संस्कृति से जुड़े हुए विषयों पर फिल्म बना चुके रश्मि जेता हमेशा ही अपने मीनिंगफुल सिनेमा के लिए जाने जाते हैं खास बात यह है कि उनकी पत्नी शिक्षिका श्रीमती रश्मि जेता इन फिल्मों को प्रोड्यूस करती है और रश्मि जेता इन फिल्मों का निर्देशन करते हैं।
10 से भी अधिक महत्वपूर्ण विषयों पर ये फिल्म बना चुके हैं उनकी नई फिल्म के बारे में उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि कुहू एक ऐसी कहानी है जो कि हमारे आसपास हर रोज घटित होती है पर हम शायद अपने सामाजिक बंधनों की वजह से अपने ही घर की बेटियों को वो अधिकार नहीं दे पाते जो उन्हें मिलना चाहिए पर शायद इस फिल्म को देखने के बाद लोगों की सोच में परिवर्तन हो और एक बड़ा सामाजिक पुनर्जागरण हमारे समाज में देखने को मिले इस टीम द्वारा खजुराहो की बोलती दीवारें ,ओरछा- क्या हरदौल जिंदा है राई नृत्य पर आधारित फिल्म अभिशप्त रानियां जैसी कई फिल्मों का निर्माण किया जा चुका है। उनकी फिल्मों को देश के प्रतिष्ठित फिल्म अवार्ड फिल्म फेयर में भी नॉमिनेशन मिल चुका है राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाले फ़िल्म समारोह में उनकी फिल्मों को करीब 20 से भी अधिक अवार्ड मिल चुके हैं बुंदेलखंड में सिनेमा को जिंदा रखने की लगी उनकी टीम द्वारा एक बार फिर इस फिल्म का निर्माण किया गया है ये फिल्म ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुई थी टीम की माने तो आगामी समय में इस फिल्म को और भी बड़े-बड़े अवार्ड मिल सकते है।
फिल्मों के लिए प्रसिद्ध माया नगरी मुंबई में इस फिल्म की अधिकांश शूटिंग की गई है वही दमोह के भी कुछ क्षेत्रों में भी इस फिल्म की शूटिंग की गई है फिल्म में असिस्टेंट डायरेक्टर नरेंद्र अठ्या, सिनेमैटोग्राफर और एडिटर राहुल तिवारी एक और सिनेमैटोग्राफर शनि परोचे है वही सहयोगियों के तौर पर दिनेश ठाकुर अजीत सिंह ठाकुर, भूपत सिंह, देवेंद्र सहित एक बड़ी टीम ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है पूरी टीम को उम्मीद है कि यह फिल्म आने वाले दौर में एक नया इतिहास रचेगी और बुंदेलखंड फ़िल्म इंड्रस्टी के लिए मील का पत्थर साबित होगी।
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