देवी भागवत कथा के आठवें दिन महागौरी शक्ति की पूजा की जाती है , नाम से प्रकट है कि इनका रूप पूर्णतः गौर वर्ण है – पं. श्रीहरि जी महाराज..

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देवी भागवत कथा के आठवें दिन महागौरी शक्ति की पूजा की जाती है, नाम से प्रकट है कि इनका रूप पूर्णतः गौर वर्ण है, – पं. श्रीहरि जी महाराज

दमोह। स्थानीय शिव शनि हनुमान मंदिर एस.पी.एम. नगर में 20 नवम्बर 2024 से 28 नवम्बर 2024 तक नव दिवसीय श्रीमद् देवी भागवत कथा पुराण एवं गौतम परिवार द्वारा आयोजित इस आयोजन में हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध कथा वाचक श्री हरि जी महाराज के मुखारविंद से कथा की जा रही हैं।

हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध कथा वाचक श्री हरि जी महाराज के मुखारविंद से कथा की जा रही हैं। नव दिवसीय श्रीमद् देवी भागवत कथा में बताया कि मां दुर्गा के आठवें दिन आठवें स्वरूप आदि शक्ति महागौरी की पूजा की जाती है। आठवें दिन की पूजा देवी के मूल भाव को दर्शाता है, देवीभागवत् पुराण में बताया गया है कि देवी मां के 9 रूप और 10 महाविघाएं सभी आदिशक्ति के अंश और स्वरूप हैं लेकिन भगवान शिव के साथ उनके अर्धांगिनी के रूप में महागौरी सदैव विराजमान रहती हैं। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। महागौरी की पूजा मात्र से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं और वह व्यक्ति अक्षय पुण्य का अधिकारी हो जाता है। ज्यादातर घरों में नवरात्र की अष्टमी तिथि के दिन कन्या पूजन किया जाता है वहीं कुछ लोग नवमी तिथि के दिन कन्या पूजन करते हैं। शिवपुराण के अनुसार, महागौरी को आठ साल की उम्र में ही अपने पूर्व जन्म की घटनाओं का आभास होने लग गया था। उन्होंने इसी उम्र से ही भगवान शिव को अपना पति मान लिया था और शिव को पति रूप में पाने के लिए तपस्या भी शुरू कर दी थी। इसलिए अष्टमी तिथि को महागौरी के पूजन का विधान है। इस दिन दुर्गा सप्तशती के मध्यम चरित्र का पाठ करना विशेष फलदायी होता है। जो लोग 9 दिन का व्रत नहीं रख पाते हैं, वे पहले और आठवें दिन का व्रत कर पूरे 9 दिन का फल प्राप्त करते हैं। एक शक्तिपीठ कांगड़ा देवी के बारे में ये बातें, जानकर रह जाएंगे दंग महागौरी की कथा देवीभागवत पुराण के अनुसार, देवी पार्वती अपनी तपस्या के दौरान केवल कंदमूल फल और पत्तों का आहार करती थीं। बाद में माता केवल वायु पीकर ही तप करना आरंभ कर दिया था। तपस्या से माता पार्वती को महान गौरव प्राप्त हुआ है और इससे उनका नाम महागौरी पड़ा। माता की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनको गंगा में स्नान करने के लिए कहा। जिस समय माता पार्वती गंगा में स्नान करने गईं, तब देवी का एक स्वरूप श्याम वर्ण के साथ प्रकट हुईं, जो कौशिकी कहलाईं और एक स्वरूप उज्जवल चंद्र के समान प्रकट हुआ, जो महागौरी कहलाईं। मां गौरी अपने हर भक्त का कल्याण करती हैं और उनको सभी समस्याओं से मुक्ति दिलाती हैं।

ऐसा है मां का स्वरूप देवीभागवत पुराण के अनुसार, महागौरी का वर्ण रूप से गौर अर्थात सफेद हैं और इनके वस्त्र व आभूषण भी सफेद रंग के ही हैं। मां का वाहन वृषभ अर्थात बैल है, जो भगवान शिव का भी वाहन है। मां का दाहिना हाथ अभयमुद्रा में है और नीचे वाले हाथ में दुर्गा शक्ति का प्रतीक त्रिशुल है। महागौरी के ऊपर वाले हाथ में शिव का प्रतिक डमरू है। डमरू धारण करने के कारण मां को शिवा के नाम से भी जाना जाता है। मां का नीचे वाला हाथ अपने भक्तों को अभय देता हुआ वरमुद्रा में हैं और मां शांत मुद्रा में दृष्टिगत है।

सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते।।

अष्टमी तिथि पर महागौरी की पूजा का विधान भी बाकी दिनों की तरह ही होता है। जिस तरह सप्तमी तिथि को माता की पूजा की जाती है, उसी तरह अष्टमी तिथि को भी शास्त्रीय विधि से पूजा की जाती है। इस दिन माता के कल्याणकारी मंत्र ओम देवी महागौर्यै नमः का जप करना चाहिए और मां को लाल चुनरी चढ़ानी चाहिए, सबसे पहले लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर महागौरी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करने के बाद महागौरी यंत्र रखकर स्थापना करनी चाहिए।

आज की कथा मैं मध्य प्रदेश शासन के पूर्व मंत्री विधायक जयंत मलैया, पूर्व विधायक अजय टंडन,कलेक्टर सुधीर कोचर, एस डी एम आर एल वागरी ने भी कथा में पहुँचकर भाग लिया।

आज कथा का समय दोपहर 2 बजे से शाम 5 बजे तक श्रीमद् देवी भागवत कथा का आयोजन किया जाएगा। तत्पश्चात शाम 5 बजे आरती एवं प्रसाद वितरण किया जावेगा। शहर में पहली बार श्रीमद् देवी भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है सभी धर्म प्रेमी बंधुओ से इस अवसर पर गौतम परिवार ने सभी से अधिक से अधिक संख्या में पधारकर धर्म लाभ ले।

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