मां की पूजा करने से सभी प्रकार से विपत्तियां हो जाती है दूर-श्री हरि महाराज..

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दमोह। मां दुर्गा के नौवे दिन कि कथा बृहस्पति जी बोले हे ब्रह्मा जी आप अत्यंत बुद्धिमान, सर्वशास्त्र और चारों वेदों को जानने वालों में श्रेष्ठ हो, हे प्रभु कृपा कर मेरा वचन सुनो, चैत्र, आश्विन, माघ और आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष में नवरात्रि का व्रत और उत्सव क्यों किया जाता है, जो मनुष्य मनोरथ पूर्ण करने वाली दुर्गा, महादेवी, सूर्य और नारायण को ध्यान करते हैं, वे मनुष्य धन्य हैं। यह नव दिवस व्रत सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इसके करने से पुत्र चाहने वाले को पुत्र, धन चाहने वाले को धन, विद्या चाहने वाले को विद्या और सुख चाहने वाले को सुख मिल सकता है। इस व्रत को करने से रोगी मनुष्य का रोग दूर हो जाता है और कारागार में पड़ा हुआ मनुष्य बन्धन से छूट जाता है। मनुष्य की तमाम विपत्तियां दूर हो जाती हैं और उसके घर में सम्पूर्ण सम्पत्तियां आकार उपस्थित हो जाती हैं। समस्त पापों को दूर करने वाले इस व्रत के करने से ऐसा कौन-सा मनोरथ है जो सिद्ध नहीं हो सकता।


जिसको सुनने से तमाम पापों से छूटकर मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।स्थानीय शिव शनि हनुमान मंदिर एस.पी.एम. नगर में 20 नवम्बर 2024 से 28 नवम्बर 2024 तक नव दिवसीय श्रीमद् देवी भागवत कथा पुराण के अंतिम दिन एवं गौतम परिवार द्वारा आयोजित इस आयोजन में हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध कथा वाचक श्री हरि जी महाराज के मुखारविंद से कथा की जा रही हैं। नव दिवसीय श्रीमद् देवी भागवत कथा में बताया कि
 आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नौ दिन तक विधि पूर्वक व्रत करें यदि दिन भर का व्रत न कर सके तो एक समय का भोजन करें, जानकार ब्राह्मणों से पूछकर घट स्थापना करें और वाटिका बनाकर उसको प्रतिदिन जल से सींचें महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की मूर्तियां बनाकर उसकी नित्य विधि सहित पूजा करें और पुष्पों से विधि पूर्वक अर्घ्य दें। बिजौरा के फूल से अर्घ्य देने से रूप की प्राप्ति होती है। जायफल से कीर्ति दाख से कार्य की सिद्धि होती है। आंवले से सुख और केले से भूषण की प्राप्ति होती है। इस प्रकार फलों से अर्घ्य देखकर यथाविधि हवन करें। खांड, घी, गेहूं, शहद, जौ, तिल, नीबू, नारियल, दाख और कदम्ब इनसे हवन करें। गेहूँ होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है खीर व चम्पा के पुष्पों से धन और पत्तनों से तेज और सुख की प्राप्ति होती है। आँवले से कीर्ति और केले से पुत्र हो। कमल से राज सम्मान और दुखों से सुख संपत्ति की प्राप्ति होती है। व्रत करने वाला मनुष्य इस विधान से होम कर आचार्य को अत्यंत नम्रता के साथ प्रणाम करे और यज्ञ की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दे, इस महाव्रत को पहले बताई हुई विधि के अनुसार जो कोई करता है उसके सब मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं इसमें तनिक भी संशय नहीं है इन नौ दिनों में जो कुछ दान आदि दिया जाता है, उसका करोड़ों गुना फल मिलता है। इन नव दिवस के व्रत करने से ही अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है। इस सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाले उत्तम व्रत को तीर्थ मंदिर अथवा घर में ही विधि के अनुसार करें, ब्रह्मा जी बोले कि हे बृहस्पते इस प्रकार ब्राह्मणी को व्रत की विधि और फल बताकर देवी अंतर्ध्यान हो गई जो मनुष्य या स्त्री इस व्रत को भक्ति पूर्वक करता है वह इस लोक में सुख पाकर अन्त में दुर्लभ मोक्ष को प्राप्त होता है। यह भगवती शक्ति संपूर्ण लोकों का पालन करने वाली है, इस महादेवी के प्रभाव को कौन जान सकता है।
शहर में पहली बार श्रीमद् देवी भागवत कथा का हुआ समापन, और भक्त हुये भावुक सभी धर्म प्रेमी बंधुओं नेे बड़ी संख्या में पहुंच कर धर्मलाभ लिया, इस अवसर पर गौतम परिवार ने सभी  धर्म प्रमियों का ह्रदय से आभार माना। इस अवसर पर पंडित श्री हरि महाराज ने नैना देवी व ज्वाला देवी के गीत कथा का वर्णन किया।

सुनना है तो नगाड़ा के साथ बांसुरी को सुनो- मुनि श्री निरीह सागर जी


दमोह।
 सुनना है तो नगाडा के साथ बांसुरी को सुनो यह प्रसिद्ध हाइकु समाधिस्थ आचार्य भगवान विद्यासागर जी महाराज का है इसका मतलब यह है कि भौतिकवाद की कितनी भी चकाचौंध हो यदि व्यक्ति धर्म करना चाहे तो वह कर सकता है जिस तरह कितना भी कोलाहल हो यदि हमारा ध्यान मोबाइल पर हो तो हम सामने वाले की बात सुन भी लेते हैं और अपनी बात पहुंचा भी देते है। उपरोक्त विचार मुनि श्री निरीह सागर जी महाराज ने कांच मंदिर स्टेशन चौराहा पर अपने मंगल प्रवचनों में अभिव्यक्त किये। इसके पूर्व बड़े बाबा एवं छोटे बाबा के चित्र के समक्ष ज्ञान ज्योति का प्रज्वलन किया गया आचार्य विद्यासागर जी की मंगल पूजन की गई कांच मंदिर समिति के अलावा जिनशरणम एवं सदगुआ मंदिर सागर नाका के भक्तगणों के द्वारा मुनि संघ के मंगल आगमन हेतु श्रीफल अर्पित किया गया भक्त गणों के द्वारा शास्त्र समर्पित किए गए।

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इस अवसर पर मुनि श्री प्रयोग सागर जी महाराज ने अपने मंगल प्रवचनों में कहा कि महात्मा बुद्ध एक बार जब शास्त्रों के गुड रहस्य को अपने शिष्यों को बता रहे थे तभी एक सामान्य व्यक्ति वहां आकर बैठ जाता है और वहां से जाते समय नृत्य करता हुआ आनंद में तृप्त होकर जाता है भगवान बुद्ध के वरिष्ठ शिष्य आनंद बुद्ध जी से पूछते हैं कि ऐसा उसे क्या रहस्य प्राप्त हो गया जो वह इतना प्रसन्न हो गया बुद्ध भगवान  बताते हैं की शिष्य चार प्रकार के होते हैं जिस तरह चार प्रकार के घोड़े होते हैं एक घोड़ा चाबुक की फटकार सुनकर ही दौड़ पड़ता है दूसरा घोड़ा चाबुक की परछाई को देखकर ही दौड़ जाता है तीसरा प्रकार का घोड़ा चाबुक की मार लगती है तब ही दौड़ता है और अंतिम प्रकार का घोड़ा कितना भी मारो नहीं दौड़ता अड़ियल हो जाता है इसी तरह चौथी प्रकार के श्रोता कितना भी कहने पर अपने अड़ियल स्वभाव को नहीं छोड़ते किंतु साधु संत बिना किसी स्वार्थ के मनुष्य के कल्याण के लिए धर्म का मार्ग बताते हैं वे मोक्ष मार्ग का उपदेश देते हैं। पंच कल्याणक महोत्सव पुण्य उपार्जन के अवसर होते हैं धर्म प्रभावना के बहुत बड़े आयोजन हैं इनमें सभी का सहयोग आवश्यक है सहयोग के बिना जिन शासन की प्रभावना नहीं हो सकती जिन मंदिर अशंख लोगों के सम्यकत्व का कारण बनते हैं धर्म तो इत्र की एक बूंद की तरह है जिसकी एक बूंद ही महक के लिए काफी होती है इत्र से स्नान कोई नहीं करता धर्म की एक बूंद भी मनुष्य का कल्याण कर सकती है। मीडिया प्रभारी सुनील वेजीटेरियन ने बताया कि दिनांक 29 नवंबर को प्रातः 8ः30 बजे जिनशरणम सागर नाका मंदिर में मंगल प्रवचन होंगे एवं उसके बाद मुनि संघ की आहार चर्या संपन्न होगी सागर नाका मंदिर समिति ने सभी से प्रवचन लाभ लेने की अपील की है।

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