दमोह में गौवंश की दुर्दशा, मंत्री के गृह जिले में गौशालाओं की अनदेखी..

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दमोह- दमोह जिले से ही प्रदेश के पशु पालन मंत्री लखन पटेल हैं, उनके गृह जिले में ही गौवंश का कोई ठिकाना नहीं है। इतना ही नहीं उनके गृह जिले में गौकशी भी अनवरत हो रही है। आवारा मवेशी यदि बीमार होते हैं तो वह गौ सेवकों के हवाले कर दिए जाते हैं। सरकारी महकमा व शासकीय अनुदान प्राप्त गौ शालाएं हाथ खड़े कर देती हैं।

दमोह जिले में गौ-अभ्यारण्य सहित 36 से गौ शालाएं सरकारी अनुदान पर संचालित हो रही हैं। वहीं 13 गौ शालाओं का संचालन निजी संस्थाओं द्वारा किया जा रहा है। इस तरह पूरे जिले में 49 गौ शालाओं का संचालन किया जा रहा है। इसके बाद भी बीमार गौ वंश को शहर के गौ सेवकों के हवाले कर दिया जाता है। जो यहां वहां से चंदा जुटाकर जैसे-तैसे गौ वंश को उसके पैरों पर खड़ा करने के लिए नि: स्वार्थ भाव से लगे रहते हैं।

तहसील में बीमार नंदी गौ सेवक के हवाले

पुरानी तहसील में एक नंदी बीमार थे, पहले पशु चिकित्सा विभाग को खबर दी गई। वहां से एंबुलेंस आई और इंजेक्शन देकर चलती बनी। यहां बैठे नंदी पर नजर पड़ी तो कुछ लोगों ने पशु पालन मंत्री लखन पटेल, कलेक्टर सुधीर कोचर को फोन लगाकर खबर दी। पशु पालन मंत्री ने नगर पालिका सीएमओ प्रदीप शर्मा को खबर दी। सीएमओ ने उक्त नंदी को पशु चिकित्सालय या किसी गौ शाला न भिजवाकर, पुराना थाना भिजवा दिया। जहां पर गौ सेवक दीपक नेमा बीमार गौवंशों की सेवा लोगों द्वारा सहयोग व दान दी जाने वाली राशि से करते हैं। दीपक नेमा के पास जगह का अभाव है, इसलिए व गौवंश की सेवा पुराना थाना स्थित सीएसपी कार्यालय परिसर में ही करते हैं। जबकि जिले में 49 गौ शालाएं हैं, जहां पर बीमार गौवंश को भिजवाया जा सकता है, लेकिन वहां न भेजकर समाज के सहयोग करने वाले निष्ठावान गौ सेवकों को बीमार गौवंश थमाया जा रहा है।

अनुदान प्राप्त गौ-शालाओं में हेरा-फेरी

दमोह जिले में 36 सरकारी अनुदान प्राप्त गौ शालाएं हैं जहां पर केवल औपरचारिकताएं की जा रही हैं। इन्हीं गौ शालाओं से बीमार गौवंश को खुले में छोड़ दिया जाता है। जो सडक़ों पर आकर हादसे का शिकार होत हैं या दीपक नेमा जैसे गौ सेवक के हवाले कर दिए जाते हैं। इन गौ शालाओं में 100 गौ वंश रखे जाने की क्षमता है, लेकिन अनुदान प्राप्त करने के लिए यह क्षमता से अधिक संख्या रेकार्ड में तो बताते हैं, लेकिन हकीकत में इन गौ शालाओं में 10 से 20 गौवंश ही दिखाई देता है। साथ ही इन गौ शालाओं में भूसा चारा की व्यवस्था नहीं की जाती है, केवल सूखे डंठल वाले पशु आहार यहां पर दिखाई देता है।

गौ संवर्धन व संरक्षण केवल कागजी घोड़ा

पशु पालन मंत्री लखन पटेल के गृह जिले में गौ संवर्धन व संरक्षण केवल कागजी घोड़ा दौड़ाना साबित हो रहा है। योजनाओं के नाम पर अफसर व नेता मिल बांटकर राशि डकार रहे हैं। दमोह जिले से ही सबसे ज्यादा गायों की तस्करी हो रही है। रात गहराते ही मुख्य सडक़ों पर गाय हांकते हुए कसाई दिखाई दे जाते हैं। यह गाय कहां से आती हैं, इन्हें ठौर क्यों नहीं मिल रहा है, इस संदर्भ पशुपालन व डेयरी विभाग से लेकर जिला प्रशासन तक चिंतित नहीं रहता है। चिंता केवल गौ सेवकों व हिंदू संगठनों को रहती है। जो दिन रात इस चिंता में दुबले हो रहे हैं कि कहीं गौ माता का कत्ल न हो जाए कहीं बीमार गौ वंश बिना इलाज के न चल बसे।

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