दमोह – मागंज वार्ड नंबर पांच में चल रही श्री रामकथा में किशोरी जी ने बताया कि हमारा सारा जीवन मन के द्वारा ही संचालित होता है। जिस प्रकार प्रत्येक मौसम में हमारा खान-पान, हमारा परिधान बदलते रहते हैं उसी प्रकार हमारा मन भी बदलते रहता है।
*कथा व्यास किशोरी वैष्णवी गर्ग* ने बताया कि माता सती ने अभिमान वश कूंभज ऋषि से श्री राम की कथा को नही सुना और श्री राम पर संदेह किया। उसके बाद माता सती बिना बुलाए अपने पिता के यज्ञ में गई। भगवान शंकर का और अपना अपमान सहन नही कर सकी। योग अग्नि के द्वारा अपने शरीर को जलाकर भस्म कर दिया।
किशोरी जी ने भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण की कथा का उदाहरण देते हुए बहुत ही रोचक रूप से समझाया कि क्या कारण है कि त्रेतायुग में और द्वापरयुग दोनों में युद्ध हुआ किन्तु द्वापरयुग में कृष्ण राज्य नहीं बना और त्रेतायुग में रामराज्य की स्थापना हो गई। इसका कारण बताते हुए कहा कि भगवान कृष्ण ने गीता में जो उपदेश दिया उसे सही सही ना समझना है।
किशोरी जी ने शिव विवाह का विस्तार से वर्णन किया
यदि हमें गीता को समझना है तो उससे पहले श्रीरामचरितमानस को समझना होगा। गीता का यदि कोई सर्वश्रेष्ठ टीका है तो वह श्रीरामचरितमानस है।
भगवान कृष्ण ने गीता का जो उपदेश दिया उसको सबसे पहले चार लोगों ने सुना, अर्जुन, हनुमानजी, संजय और धृतराष्ट्र ने। अर्जुन ने साधक के रूप में ग्रहण किया, हनुमानजी ने कथा रसिक के रूप में , संजय ने श्रोता और वक्ता के रूप में और धृतराष्ट्र ने मोह की भावना से ग्रहण किया। ये हमारे मन पर ही निर्भर करता है कि हम भगवान की कथा को किस रूप में ग्रहण करते हैं।
कथा के मुख्य यजमान
अभिषेक तिवारी
विमल यादव
विधान पाराशर
प्रशांत राजपूत
उमेश अठ्या
निशांत तिवारी
शुभम तिवारी
आकर्षित तिवारी
भरत पटेल
मनीष अवस्थी
प्रह्लाद पटेल
दीप साहू दीदी
एवं समस्त वार्डवासी
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