जिनशासन में प्रदर्शन का महत्व नहीं जिनशासन में दर्शन और अंतरदर्शन का महत्व है…

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जिनशासन में प्रदर्शन का महत्व नहीं जिनशासन में दर्शन और अंतरदर्शन का महत्व है..
निर्यापक मुनि श्री समता सागर जी महाराज..
कुंडलपुर दमोह। सुप्रसिद्ध जैन तीर्थ सिद्धक्षेत्र कुंडलपुर में निर्यापक श्रमण मुनि श्री समता सागर जी महाराज ने मंगल प्रवचन देते हुए कहा यह बात सच है कि मैं अपने जेष्ठ श्रेष्ठ के प्रवचन सुनने के लिए यहां उपस्थित कल भी हुआ था आज भी हुआ। लेकिन पूज्यवर का आदेश टालने की कोशिश भी की लेकिन टाल नहीं पाया ।गुरुवर आचार्य श्री ने मूकमाटी में लिखा है बड़ों के आदेश को टालना नहीं पड़ता बल्कि पालना पड़ता है ।पूत के लक्षण पालने में दिखाई देते हैं। हम जिस उद्देश्य से सभी यहां उपस्थित हैं हमारे निर्यापक श्रमण के लक्षण बचपन से उस तरह दिखाई दे रहे हैं, जो आज 55 की उम्र में भी हम सबको एहसास हो रहा है। मैंने एक जगह पढ़ा था अगर कहीं कोई ऊंचा पहाड़ पर्वत हो तो यह निश्चित मानकर चलिए आसपास गहरी नदी जरूर होगी ।क्योंकि गहराई को पाये बगैर कभी कोई ऊंचाई को प्राप्त नहीं कर सकता। कुंडलपुर के बड़े बाबा ऊंचाई पर विराजमान है आद्य शासन नायक हैं उनका सर्वोदयी शासन जो चल रहा है ऊंचाई से चल रहा है। लेकिन उस ऊंचाई का परिचय वर्धमान सागर की गहराई से भी हमें मिल रहा है ।आद्य तीर्थंकर भगवंत और उनका जिन शासन गणधरों और आचार्यों की परंपरा से यहां तक आया है । आचार्यों जिन शासनोन्नतिकरा आचार्य वह होते हैं जिन शासन की उन्नति को करते हैं जिन शासन के विस्तार को करते हैं। आचार्य प्रवर को जो विरासत मिली थी अपने गुरुवर ज्ञान सागर महाराज से आचार्य श्री ने उस विरासत का विस्तार किया और अपने कठिन परिश्रम से कठोर साधना से अपनी निस्पृहता से निराभिमानता से उन्होंने जो विरासत में खोज मिली थी उसे समुद्र सागर बनाकर दिखा दिया है ।आज हम सबके बीच में हमारे गुरुवर नहीं है ।देह का परिवर्तन हुआ पर्याय का परिवर्तन हुआ। प्रकृति का नियम है हम और आप उसे चाहे उसे टाल नहीं सकते।लेकिन उन्होंने जो संघ की संयोजना की है संघ का संवर्धन किया है वह विरासत उस रूप में बल्कि उससे ज्यादा विस्तार पाकर यावतचंद्र दिवाकर बढ़ती रहेगी ।जैन शासन का रथ कभी रुकता नहीं है एक सारथी कहीं बदलता है तो दूसरा सारथी उस रथ को आगे बढ़ाता है ।हम सब का सहयोग अपने योग्यतम सारथी के लिए है ।पूर्ण निष्ठा पूरी ईमानदारी से पूरे संघ का है। हम सबके सर्वोच्च सारथी निर्यापक श्रमण मुनि श्री समय सागर जी हैं। सारी समाज सारा देश इस भावना से ओतप्रोत है ।गहराई को पाये बगैर कोई भी ऊंचाई दिखाऊ तो हो सकती है लेकिन टिकाऊ नहीं हो सकती ।हमारे गुरुवर ने यह सिखाया है कि हमें कोई भी कार्य दिखाऊ नहीं करना है टिकाऊ करना है ।बड़े-बड़े झाड़ गगनचुंबी जिनालय भव्यतम मंदिर जितने जितने ऊंचे दिखाई देते इतने उन्हें मजबूत बनाने के लिए नींव की गहराई की जाती है जब बड़े बाबा का मंदिर बन रहा था बनने का प्लान चल रहा था आचार्य श्री ने सभी को यही निर्देश दिया था ऊंचाई के अनुपात से अंदर पहाड़ी में नींव के रूप में गहराई में बहुत ज्यादा मजबूती तैयार करना चाहिए और आज बड़े बाबा का भव्यतम मंदिर आज सबको दिखाई दे रहा है ।सारांश यह है कि जिन शासन में दिखाने का महत्व नहीं है जिन शासन में प्रदर्शन का महत्व नहीं है जिन शासन में दर्शन और अंतरदर्शन का महत्व है ।पूत के लक्षण पालने में दिखाई देते हैंमूक माटी में गुरुवर ने दो अर्थ निकाले लौकिक एक छोटा सा बच्चा जाता है पालने में पड़ा रहता है तो पालने में उसकी एक्टिविटी गतिविधि देखकर यह अंदाज लगा लिया जाता है कि बच्चा किस स्वभाव का है पूत के लक्षण पालने में दिखाई देते यह भविष्य में क्या करेगा और फिर गुरुवर ने नया दिया सभी को पूत का लक्षण पालने में है और छोटे से शिशु या शिष्य का लक्षण वहीं से दिखाई देने लगता है कि वह गुरु की आज्ञा को कितना पाल रहा है आज्ञा पालन के रूप में जो अर्थ दिया गया वह परमार्थ का अर्थ है हम सभी का अर्थ है जैसे गुरु का स्मरण आप सबको होता है हमें भी बार-बार होता है ।उन क्षणों को कभी भूला नहीं जाता। जिन क्षणों को गुरुवर अपनी सर्वोत्कृष्ट साधना में थे उन क्षणों को जिन क्षणों में प्रतिकूलता होने पर भी समता का भाव उनके चेहरे पर दिखाई दे रहा था ।हमारे योग्य जेष्ठ श्रेष्ठ निर्यापक श्रमण मुनि योग सागर जी महाराज इसके साक्षी रहे हैं मैं स्वयं साक्षी रहा हूं ,प्रसाद सागर महाराज साक्षी रहे हैं, साथ रहने वाले चंद्रप्रभ सागर महाराज ,निरामय सागर ,पूज्यसागर, महासागर आदि महाराज इसके साक्षी रहे हैं। उन क्षणों में मन अधीर हो गया था हृदय कांप रहा था क्योंकि सारी स्थितियां समझ में आने लगी थी। योगसागर जी महाराज ने संकेत किया कहीं किसी को रोना नहीं आखिरी समय समाधि का धैर्य रखो,अपने सभी भावों को संभालकर सभी महाराज जी गुरुवर को क्या संबोधित करेंगे बल्कि एक छोटा बेटा पिता का जो भाव होता कर सकता है वह सभी हम शिष्यों ने किया। हम सब की परम चैतन्यता को लेकर रही है उसके अनेक स्मरण चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में मैंने सुनाएं थे। आज भी वह संदर्भ हमारे मानस में घूमते रहते हैं ।ऐसे गुरुवर के प्रति जो प्राणपण से कर्तव्य बना वह किया आप सभी हृदय से जुड़े रहे उस समय तक बड़ा धैर्य रखा जिस समय जेष्ठ श्रेष्ठ निर्यापक श्रमण समयसागर जी का आगमन हुआ ।मुनिवर ने समाधि स्थल की वंदना की भक्ति पाठ संपन्न किया और हम सभी महाराज ,महाराज जी को लेकर आए तब तक बड़ा धैर्य रखा ।जब महाराज जी जाकर के कक्ष में विराजमान हुए और मैंने अपने पूज्यवर के चरणों में माथा रखा मेरी आंखों से आंसुओं की धार वह निकली क्योंकि अब हमारे लिए एक ही तो सहारा है संसार सागर से पार होने यही तो एक किनारा है। मुनि ने बड़ा धैर्य बंधाया और उस समय सारी परिस्थितियां मुनिवर के सामने रखी।

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